Description
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में पाठ्यपुस्तकों के साथ-साथ पूरक पाठ्यसामग्री के निर्माण पर भी विशेष जोर दिया गया है ताकि विद्यार्थियों में तरह-तरह की किताबें पढ़ने की आदत विकसित हो। पाठ्यपुस्तक के गहन अध्ययन की सीमा से बाहर वे स्वयं पढ़कर अपने अनुसार साहित्य की समझ बना सकें।
इतना ही नहीं, आज के जीवन के तरह-तरह के चकाचौंध और आकर्षण के बीच भी वे किताबों की दुनिया से जुड़े रहें। पाठ्यपुस्तक की अपनी सीमा होती है और कई प्रमुख रचनाकार और विधाएँ उस सीमा के कारण छूट जाती हैं। इनमें से कुछ रचनाकारों और विधाओं से पूरक पाठ्यपुस्तक के माध्यम से विद्यार्थियों को परिचित कराया जा सकता है।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थियों की उम्र, रुचि और योग्यता के अनुसार इस पूरक पाठ्यपुस्तक का निर्माण किया गया है।
Reviews
There are no reviews yet.