
जब शिक्षक बन जाएं बुक एजेंट: एक ग्रामीण इलाक़े की कहानी।
भारत में शिक्षा को हमेशा एक सेवा (service) माना गया है। लेकिन आज जब हम अपने आस-पास के रूरल एरिया में नज़र डालते हैं, तो शिक्षा एक कमाई का साधन (business) बनती जा रही है — और सबसे ज़्यादा असर छात्रों पर हो रहा है।
कोचिंग सेंटर या कमीशन सेंटर?
ग्रामीण इलाकों में आजकल हर गली-मोहल्ले में कोचिंग सेंटर खुल गए हैं। ये संस्थान छात्रों को परीक्षा की तैयारी करवाने के लिए होते हैं, लेकिन कई जगह अब इनका उद्देश्य बदल गया है।
क्या हो रहा है?
- पब्लिशर के एजेंट सीधे कोचिंग सेंटरों के टीचर्स से संपर्क करते हैं।
- कहते हैं: “हमारी किताब बेचिए, हर किताब पर ₹50 से ₹100 तक कमीशन मिलेगा।”
- टीचर वही किताब छात्रों को “ज़रूरी” बताकर बेचवाते हैं — चाहे वह किताब syllabus से मेल खाती हो या नहीं।
असली नुकसान किसका?
- छात्र का — जिसे यह समझ ही नहीं आता कि किताब क्यों ली जा रही है।
- अभिभावक का — जो कमाई का बड़ा हिस्सा किताबों पर खर्च कर देता है।
- शिक्षा का — जो सेवा से व्यापार बन जाती है।
जब टीचर पढ़ाने की जगह रटवाने लगें
एक और चिंता की बात ये है कि कई शिक्षक टेक्स्टबुक या कॉन्सेप्ट क्लियर करने के बजाय, सीधे गाइड और क्वेश्चन बैंक से सवाल-जवाब रटवाते हैं।
रटंत विद्या (मुग़ल-स्टाइल याददाश्त) = समझ की हत्या
इसका असर?
- बच्चे को पढ़ाई बोझ लगने लगती है।
- सोचने और समझने की क्षमता मर जाती है।
- एग्जाम के बाद सब कुछ भूल जाता है।
- और आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है।
शिक्षक का असली धर्म क्या है?
“गुरु वो नहीं जो किताब बेचवाए, गुरु वो है जो किताब समझाए।”
एक अच्छे शिक्षक को चाहिए:
- छात्रों को विषय की गहराई से समझ देना।
- जरूरत के अनुसार सही किताब चुनवाना।
- खुद को कमीशन से ऊपर रखना।
एक जिम्मेदार बुकसेलर का अनुभव
मैं, एक ग्रामीण क्षेत्र में किताबों की दुकान चलाता हूँ। रोज़ माता-पिता और छात्र आते हैं — और अक्सर उनके हाथ में एक slip होती है जिस पर कोचिंग वाले टीचर ने कोई खास किताब लिख दी होती है।
जब मैं पूछता हूँ:
“ये किताब क्यों चाहिए?”
तो जवाब होता है:
“सर ने कहा है।”
Kavya Books की पहल
हम चाहते हैं कि:
- छात्र वही किताब लें जो उनके syllabus और जरूरत के अनुसार हो।
- माता-पिता भी पूछ सकें: “क्या ये किताब मेरे बच्चे के लिए सही है?”
- और शिक्षकगण से निवेदन है: “शिक्षा को सौदा न बनने दें।”
अगर आप माता-पिता हैं:
- आँख बंद करके कोई भी किताब न खरीदें।
- बुकसेलर से पूछें कि किताब का syllabus से क्या संबंध है।
- अपने बच्चे को भी सिखाएँ कि रटना नहीं, समझना ज़रूरी है।
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आपका एक सुझाव, किसी बच्चे के जीवन की दिशा बदल सकता है।
“शिक्षा बिकती नहीं, दी जाती है — जब तक हम सब इसे ऐसा मानें।”